न्यू मीडिया में साहित्य

बृजेश कुमार मिश्र
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न्यू मीडिया में साहित्य 


मनुष्य में संवाद की इच्छा स्वाभाविक रूप से होती है। इसके लिए वह कोई न कोई माध्यम का चुनाव करता है। ‘मीडिया’ शब्द का चलन एवं विकास संवाद के इसी गुणधर्म के कारण प्रभाव में आया है जिसमें आजकल कई लोकप्रिय माध्यम शामिल हैं। जैसे-सत्संग, सम्मेलन, बैठकी, नाटक, समाचार पत्र-पत्रिकाएँ, रेडियो, टेलीविज़न, सिनेमा इत्यादि। आज के तकनीकी-प्रौद्यौगिकी आधारित युग में कंप्यूटर और इंटरनेट के कारण माध्यम की एक नई प्रणाली प्रयोग में है जिसे हम ‘न्यू मीडिया’ कहते हैं। इन माध्यमों ने साहित्य के अधिकाधिक प्रचार-प्रसार का काम खूब किया है। साहित्य भारतीय जनमानस में लोक-संवेदना और लोकाचार को प्रतिष्ठित करने में अग्रणी भूमिका निभाता रहा है। स्वाधीनतापूर्व साहित्य और मीडिया के अंतःसम्बन्ध निकट के और अत्यंत प्रभावशाली माने गए हैं।

साहित्य और मीडिया

भाषाओं की दीवारें तोड़ता साहित्य का मीडिया से लंबा नाता रहा है। जब 30 मई, 1826 में हिंदी पत्रकारिता का उदय हुआ, तब से हिंदी साहित्य का विस्तार काफी तेजी से हुआ है। पत्र-पत्रिकाएं साहित्य के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं, फिर चाहे भारतेंदु युग हो द्विवेदी युग। भारतेंदु हरिश्चंद्र के लेखन से प्रतीत होता है कि वह हिंदी भाषा और हिंदी साहित्य के विकास में तन-मन से लगे रहे। इसका प्रमाण उनके लेखन से भी मिलता है।

‘निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल’

इस से विदित होता है कि साहित्य और मीडिया ने मिलकर भाषा को सहारा दिया और वह प्रगति के पथ पर दौड़ सकी। साहित्य और मीडिया का रिश्ता बहुत पुराना है। इसके प्रमाण हमें दो रूपों में मिलते हैं। पहला प्रमाण मिलता है कि अधिकांश साहित्यकार ही पत्रकार बने हैं और उन्होंने मीडिया और साहित्य के विकास में समान भूमिका निभाई है। भारतीय इतिहास ऐसे अनेकों नामों से भरा पड़ा है। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने साहित्य सेवा के साथ ‘कविवचन सुधा’ नामक पत्रिका का प्रकाशन किया। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी भी साहित्य सेवा में जीवनपर्यंत लगे रहे। गणेश शंकर विद्यार्थी, महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, महादेवी वर्मा, माखनलाल चतुर्वेदी से लेकर आधुनिक पत्रकारों और साहित्यकारों तक अनगिनत लोगों ने मीडिया के माध्यम से साहित्य की अहर्निश सेवा की है।

अब जब मीडिया का स्वरूप बदल गया है तो लोगों तक साहित्य की पहुंच भी बढ़ गई है। किताबों से शुरू होकर यह ’किंडल’ संस्करण के रास्ते होते हुए अब डिजिटल प्लेटफॉर्म पर निर्बाध रूप से दौड़ रही है। ‘प्रतिलिपिडॉटकॉम’ और  ‘हिंदीसमयडॉटकॉम’ पर लघु कथाओं से लेकर उपन्यास और कविता कोश पर कविताओं से लेकर महाकाव्य-खंडकाव्य और गजल तक मौजूद है जिसे बस एक क्लिक पर पढ़ा जा सकता है। इसके अलावा भी विभिन्न वेबसाइटों और ब्लॉग के जरिए साहित्य का आनंद लिया जा सकता है। आजकल लेखक अपने लेखन को पाठकों तक पहुंचाने के लिए अब किसी पारंपरिक साधन के प्रयोग मात्र पर निर्भर नहीं कर रहे हैं बल्कि वे न्यू मीडिया के माध्यम से अपने लेखन-सामग्री को प्रचारित-प्रसारित करने में जुटे हुए हैं।  

बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में, जो लोग साहित्यकार थे, उन्होंने ही आजादी की आग को जलाए रखा और अपनी बात रखने एवं युवाओं व अन्य को आजादी प्राप्त करने के लिए संघर्ष में शामिल होने के लिए मीडिया को अपना हथियार बनाया। उस समय मौजूद संसाधनों की मदद से ही माध्यम तैयार किया और लोगों तक अपनी बात रखी। बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में, जब देश आजाद हुआ और तकनीकी का विकास धीरे-धीरे महत्त्वपूर्ण होने लगा तो माध्यम भी बदलने लगे। अब रेडियो को पीछे छोड़कर टीवी अपना स्थान बनाने लगी और लोग धीरे-धीरे समाचार पत्रों पर आश्रित होने लगे। बीसवीं सदी के बीतते-बीतते इंटरनेट का जन्म हुआ और पारंपरिक मीडिया का स्वरूप बदलता चला गया। अब जो पत्रकार थे, वे साहित्यकार बनने लगे और साहित्यकारों ने पत्रकारिता से दूरियां बनानी शुरू कर दीं। हालांकि खुद को बुद्धिजीवी बताने वाला साहित्य वर्ग समाचार पत्रों और विभिन्न अन्य माध्यमों में खुद को बना देखना चाहता था।



साहित्य को आगे बढ़ाने और जन-जन तक पहुंचाने में मीडिया ने अहम भूमिका निभाई। आज भी यह काम अनवरत जारी है। विभिन्न संगठनों की ओर से आयोजित कराए जाने वाले साहित्य सम्मेलनों और अन्य साहित्यिक कार्यक्रमों से लोगों को रूबरू कराने में मीडिया सदैव साथ खड़ा रहा।पहले भी और अब और आगे भी साहित्य को लोगों तक पहुंचाने में मीडिया ने एक अहम भूमिका निभाई है और आगे भी वह अपनी भूमिका का निर्वहन करता रहेगा। लोगों तक साहित्य को पहुंचाने के साधन अब बदल गए हैं। जहां पहले प्रिंट मीडिया का सर्वाधिक उपयोग किया गया, वहीं अब डिजिटल मीडिया एक महत्वपूर्ण साधन बन गया है। आज की तारीख में लगभग सभी युवाओं के हाथों में फोन है। जिस कारण से लगभग सभी तक इंटरनेट की पहुंच है। यही कारण है कि अब डिजिटल मीडिया अत्यधिक सशक्त होता जा रहा है और वह एक हथियार के रूप में सामने आ रहा है। जिसका प्रयोग साहित्यकार और प्रकाशक भी कर रहे हैं। वह डिजिटल मीडिया के सहारे अपने रचनाकर्म को लोगों तक पहुंचा रहे हैं। अब प्रकाशकों के चक्कर काटने की भी जरूरत नहीं है। ऑनलाइन ही किताबें और रचनाएं प्रकाशित हो रही हैं। इसमें अब संपादक की भी भूमिका लगभग खत्म हो गई है। न्यू मीडिया के इस युग में लेखक और रचनाकर खुद ही संपादक है और खुद ही प्रकाशक भी और एक साथ ही उसकी पहुंच भी विभिन्न लोगों तक है जहां पर उसके पाठक त्वरित रूप से ही उसके रचनाकर्म पर अपनी टिप्पणी कर सकते हैं। मीडिया की मदद से अब एक क्लिक पर ही साहित्य उपलब्ध है और न्यू मीडिया इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

मीडिया का डिजीटलीकरण और न्यू मीडिया : साहित्य की नई बसावट

वर्ष 1998-99 मीडिया के डिजिटलीकरण के लिए अहम साबित हुआ। सबसे बड़े मीडिया समूह जैसे इंडिया टुडे ने वर्चुअल वर्ल्ड में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इसके बाद तो जैसे बाढ़ सी आ गई और छोटे-बड़े सब मीडिया समूह इंटरनेट पर जाने को बेताब हो गए। महज चार से पांच साल के भीतर ही लगभग सभी मीडिया समूह डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अपनी पकड़ बनाने में जुट गए। इसके बाद इंटरनेट और सेलफोन के क्षेत्र में हुई क्रांतियों ने डिजिटल मीडिया के विकास में चमत्कारिक रुप से काम किया। पहले चरण में कंप्यूटर और इंटरनेट के विकास के कारण पूरी दुनिया एक छोटे से बक्से में समा गई। दुनिया भर की छोटी-बड़ी खबरें और साहित्य महज एक क्लिक पर उपलब्ध होने लगे। नई तकनीक का आगाज हुआ तो साहित्य और मीडिया जगत सिकुड़कर हम आमजन की मुट्ठी में आ गया।

मौजूदा दौर में विकीपीडिया पर साहित्य भरा पड़ा है। इसके अतिरिक्त ब्लॉग्स और माइक्रोब्लॉग्स यानी कि ट्विटर के जरिए लोग अपनी बात रख रहे हैं और अपने साहित्य व रचनाकर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त खुद ही कंटेंट यानी कि सामग्री का सृजन अथवा ‘मॉडरेशन’ करने के लिए प्लेटफॉर्म मुहैया कराने वाले इस न्यू मीडिया पर भी साहित्य का एक स्वरूप धीरे-धीरे निर्मित हो रहा है। नॉटनलडॉटकॉम, प्रतिलिपिडॉटकॉम और लिटरेचर प्वाइंट जैसे प्लेटफॉर्म मिल जाने के कारण अब साहित्यकारों को प्रकाशकों के चंगुल से आजादी मिल गई है। इसके जीते-जागते उदाहरण हैं ओमप्रकाश तिवारी। अमर उजाला में करीब 22 वर्षों से सक्रिय ओमप्रकाश तिवारी ने अब तक प्रचुर मात्रा में साहित्य का सृजन किया है लेकिन उसे प्रिंट मीडिया के माध्यम से प्रकाशित करवा पाने में असमर्थ रहे। जिसके बाद उन्होंने अपने उपन्यास को डिजिटल मीडिया या न्यू मीडिया से प्रकाशित कराया और जो चर्चा का विषय बना। नॉटनलडॉट कॉम जैसे प्लेटफॉर्म पर ऐसे रचनाकरों के रचनाकर्म को देखा जा सकता है और एक निर्धारित राशि भुगतान किए जाने के बाद बहुत कम कीमत पर उनका अध्ययन किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त प्रतिलिपिडॉटकॉम ने तो जैसे न्यू मीडिया पर साहित्य के एक नए ही स्वरूप और भरे-पूरे संसार को उपस्थित कर दिया है। इस वेबसाइट की ओर से दावा किया जाता है कि इस पर करीब 9 भाषाओं में साहित्य का प्रकाशन किया जाता है जिस के अब तक करीब 33 लाख से अधिक पाठक और 53 हजार से अधिक लेखक हैं।



न्यू मीडिया में साहित्य

पारंपरिक मीडिया में किताबें और पत्रिकाएं उपलब्ध हैं। इन की अपनी एक सीमा है। जब आप साहित्य पढ़ना चाहते हैं तो आप किताबों और पत्रिकाओं पर निर्भर रहते हैं। अधिक सामग्री जुटाने के लिए आपको अत्यधिक स्पेस यानी कि जगह की जरूरत पड़ती है। लेकिन न्यू मीडिया में ऐसा नहीं है। अगर आप स्त्रियों से संबंधित लेख, आलेख और साहित्य पढ़ना चाहते हैं तो आप स्त्रीकालडॉटकॉम नाम की वेबसाइट पर जा सकते हैं और आप यदि समग्र साहित्य पढ़ना चाहते हैं तो हिंदीसमयडॉटकॉम और जानकीपुलडॉटकॉम जैसी वेबसाइट चेक कर सकते हैं। इसके लिए आपको किसी प्रकार के स्पेस की जरूरत नहीं है। जरूरत है तो सिर्फ एक मोबाइल, लैपटॉप या कंप्यूटर की और उसके साथ इंटरनेट एक्सेस की। इसके बाद न्यू मीडिया पर उपलब्ध साहित्य आप की मुट्ठी में होगा। आज यही हो रहा है। अब साहित्य की विधाओं में विभिन्न श्रेणियों की किताबों को तलाशने के लिए पुस्तकालय खोजने या किताबें ढूढ़ने के लिए चक्कर काटने की जरूरत नहीं है। अब तो सिर्फ एक क्लिक पर ही यह साहित्य मौजूद है। बस आपको सही वेबसाइट और ब्लॉग का पता हो।



ऐसी ही वेबसाइटों और ब्लॉग के सहारे न्यू मीडिया या डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अब साहित्य फल-फूल रहा है। स्वरूप अब ‘वर्जन’ में तब्दील हो गया है और यही नहीं, सिर्फ साहित्य की विधाएं ही नहीं बल्कि साहित्य को उपलब्ध कराने वाले माध्यम भी अब डिजिटल हो गए हैं और इसका सबसे अच्छा उदाहरण है सदानीरा जैसी डिजिटल पत्रिका। इसके अतिरिक्त विभिन्न समाचारपत्रों और पत्रिकाओं ने भी खुद का दूसरा स्वरूप निर्मित किया है और वह अपनी मूल पहचान के साथ ही डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हैं।

इसके अतिरिक्त भी लोग फेसबुक पर विभिन्न पेज बनाकर लोगों तक साहित्य पहुंचा रहे हैं। फेसबुक पर अलग-अलग विधाओं के अलग-अलग पेज बने हुए हैं। इन सभी पर दर्शकों की संख्या हजारों में है।

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