दुनिया के ये लोग

बृजेश कुमार मिश्र
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दुनिया के ये लोग 

नई नहीं है ये दुनिया
दुनिया के ये लोग

यहां आदमी को आदमी नहीं सुहाता है,
एक का सुख, दूसरे से देखा नहीं जाता है।

हर कोई दूसरे से कहता है कि जमाना खराब है,
खुद की नियत पर उसका ध्यान नहीं जाता है।

खुद को दिखाना गरीब, लाचार और बीमार
यहां हर इंसान को भाता है।

चाहे ढलती उम्र हो या चढ़ती जवानी
आदमी, आदमी को नोच खाता है।

छोटे को बड़ा, गरीब को अमीर, संतरी को मंतरी
हर कोई अपने अधीनस्थ को सताता है।






लगे होते हैं दामन पर दाग जिनके जितने अधिक
वह खुद को उतना ही ज्यादा पाक साफ बताता है।
खून चूसकर गरीबों का, खुद का भला करने वाला
अपने आपको जनता का सेवक बताता है।

जाने दो देवकीनंदन, सच में जमाना खराब है,
क्योंकि यहां आज जनाजा भी चार कंधो को तरस जाता है।

बताने को तो कोई न हीं बता सकता
कि अगले पल क्या होने वाला है
बनकर मुल्ला, पंडित और फादर
फिर भी जोर-जोर से चिल्लाता है।

कहने को तो बड़ी-बड़ी बातें सभी कहते हैं
कर के तो कोई विरला ही दिखलाता है।

छोड़ दे मार-काट, हिंसा और पाप का रास्ता
जन्नत तो सिर्फ इंसानियत का रास्ता ले जाता है।

सीख, नसीहत और दोष
दूसरों को देने वालों
झांक लो अपने दामन में भी जरा
तुम खुद कैसे हो
यह तरीका यही बतलाता है।

दूसरों की बात सुनकर झुंझलाने वाला
जल्दी-जल्दी थक जाता है

देश की बढ़ती जनसंख्या पर
चिंता व्यक्त करने वाला
छह-छह बच्चों का बाप कहलाता है।

अपनी भूख, गरीबी, बीमारी और दुख से ज्यादा
औरों का कम कितना ज्यादा है
यह आज की दुनिया का पढ़ा-लिखा अनपढ़ आदमी
आदमी कहां समझ पाता है।।

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