लप्रेक : इट्स हर्ट् मी, रियली

बृजेश कुमार मिश्र
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इट्स हर्ट् मी, रियली 


... आज फिर तुम्हारी याद आ रही है। बहुत याद आ रही है। इतनी कि एक पल के लिए भी भूलना मुश्किल होता जा रहा है। एक साल पूरे हो गए उस बात को।

व्हाट्सएप के मैसेज के आखिर में तुमने लिखा था कि आज के बाद मुझे कभी माफ नहीं करोगी। कई बार लगता है कि तुमने ऐसा जानबूझ के लिखा था क्योंकि अब तो तुम्हें वो इंजीनियर पसंद आ गया था। हिंदी अखबार में काम करने वाला पत्रकार तुमको क्यों अच्छा लगता।

तुम हमेशा से ऐसे घर में पली बढ़ी हो जहां पर किसी भी चीज की कमी नहीं रही लेकिन मुझे लगता है कि भावनाएं शायद नहीं होती होंगी तुम्हारें परिवार वालों के दिलों में, तभी तो तुमने चार साल के उस प्यार को एक पल में हां..., हां... एक पल में ठुकरा दिया, अपना फैसला सुना दिया और वो भी बिना दूसरा, मेरा, हां मेरा, पक्ष जाने बगैर। 

ये तुमने अच्छा नहीं किया। बिलकुल भी अच्छा नहीं किया।



मैं भी तुम्हें आज तक माफ नहीं कर पाया हूं और न कभी माफ करूंगा क्योंकि जो आग तुमने मेरे सीने में लगाई है, मैं उसे बुझने नहीं दूंगा। तुम मुझे छोड़ कर चली गई तो तुमको क्या लगता है... मैं तुम्हें भूल जाउंगा। बिलकुल नहीं।

 तुमने मुझे सिर्फ इसलिए छोड़ा कि मेरे पास ज्यादा पैसे नहीं थे, मैं एक गरीब घर से था। लेकिन शायद तुमको पता नहीं है, मैं दिल का बहुत अमीर आदमी हूं। इस दुनिया में अगर तुमको तुम्हारे मां-बाप के अलावा कोई प्यार करने वाला था, वो सिर्फ मैं। लेकिन तुमने मेरे सपनों को एक झटके में चकना चूर कर दिया। मैंने तुमसे कहा था न रोशनी... कि अगर तुम मेरी जिंदगी से चली गई तो मेरे हाथ सिवाय अंधेरों के कुछ नहीं लगेगा। लेकिन तुम मानी नहीं।

अब इस अमीर दिल की इतनी ही दुआ है कि जहां भी रहो, खुश रहो।

 लेकिन ई जो किए हो न तुम। इट्स हर्ट मी, रियली। 

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